School Building Safety Scam in MP
प्राचार्यों को इंजीनियरों की भूमिका में क्यों धकेला जा रहा है? (Why are Principals Being Forced into the Role of Engineers?)
School Building Safety Scam in MP : लोक शिक्षण संचालनालय (Directorate of Public Instruction), भोपाल द्वारा जारी एक हालिया निर्देश ने शिक्षा जगत में तूफान ला दिया है। आदेश क्रमांक / भवन / A / क्षतिग्रस्त / 2025 / 197 भोपाल, दिनांक 26.07.2025 के अनुसार, प्रदेश के समस्त हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों के प्राचार्यों को अब अपने स्कूल भवनों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराया गया है। यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब कई सरकारी स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं और विशेषज्ञता (expertise) के अभाव में प्राचार्यों पर यह बोझ डालना कई गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।

प्राचार्यों पर थोपी गई ‘इंजीनियरिंग’ की जिम्मेदारी (Engineering Responsibility Imposed on Principals)
निर्देश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्राचार्य अपनी संस्था का स्वयं निरीक्षण करें और यह सुनिश्चित करें कि कोई भी कक्ष या पूरी इमारत जर्जर (dilapidated), क्षतिग्रस्त (damaged), सीपेज युक्त न हो या उसकी छत का प्लास्टर गिरने की संभावना न हो। यदि ऐसी कोई भी स्थिति पाई जाती है, तो उन स्थानों पर बच्चों की कक्षाएं नहीं लगाई जाएंगी। आदेश में यह भी चेतावनी दी गई है कि यदि प्राचार्य द्वारा ऐसे असुरक्षित भवनों में कक्षाएं लगाई जाती हैं और कोई छोटी या बड़ी दुर्घटना (incident) या यहां तक कि जनहानि (loss of life) होती है, तो इसकी पूरी जवाबदेही (accountability) संबंधित प्राचार्य की होगी। इसके साथ ही प्राचार्यों को तत्काल प्रभाव से एक ‘सुरक्षा प्रमाण पत्र’ (safety certificate) भरकर जमा करने का भी निर्देश दिया गया है।
राज्य स्तरीय अधिकारियों की ‘पल्ला झाड़ने’ की रणनीति? (State-Level Authorities’ ‘Blame-Shifting’ Strategy?)
शिक्षा विशेषज्ञों और शिक्षक संगठनों का कहना है कि यह आदेश राज्य स्तरीय अधिकारियों द्वारा अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का एक स्पष्ट प्रयास है। एक स्कूल भवन की संरचनात्मक अखंडता (structural integrity) का आकलन करना एक अत्यंत तकनीकी कार्य (highly technical task) है, जिसके लिए सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering) में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। यह कार्य लोक निर्माण विभाग (Public Works Department – PWD) जैसे सरकारी विभागों के प्रशिक्षित इंजीनियरों द्वारा किया जाना चाहिए।
एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया “प्राचार्य शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्यों में व्यस्त रहते हैं। उन्हें भवन निर्माण या संरचनात्मक इंजीनियरिंग का कोई प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। उनसे यह उम्मीद करना कि वे एक इंजीनियर की तरह भवन की कमजोरियों को पहचानें, न केवल अव्यावहारिक (impractical) है बल्कि बच्चों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ भी है।”
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गंभीर खतरे और अनुत्तरित प्रश्न (Serious Hazards and Unanswered Questions)
इस निर्देश से कई गंभीर प्रश्न उठते हैं:
- विशेषज्ञता का अभाव (Lack of Expertise): क्या प्राचार्यों को अब भवन इंजीनियर के रूप में कार्य करने की उम्मीद है? उन्हें इस तकनीकी कार्य के लिए क्या प्रशिक्षण और संसाधन (resources) उपलब्ध कराए जाएंगे?
- जवाबदेही का हस्तांतरण (Transfer of Accountability): क्या यह आदेश राज्य सरकार और संबंधित विभागों की जिम्मेदारी को प्राचार्यों पर स्थानांतरित कर रहा है? यदि राज्य के पास पर्याप्त इंजीनियर या भवन निरीक्षण के लिए तंत्र नहीं है, तो यह उनकी समस्या है, न कि प्राचार्यों की।
- संभावित दुर्घटनाएं (Potential Accidents): यदि एक गैर-विशेषज्ञ द्वारा किए गए निरीक्षण के आधार पर किसी असुरक्षित भवन को गलती से सुरक्षित घोषित कर दिया जाता है, तो इसके भयावह परिणाम (dire consequences) हो सकते हैं, जिसमें मासूम बच्चों की जान का जोखिम भी शामिल है।
- प्रमाण पत्र का दबाव (The Certificate Game): प्राचार्यों से ‘आज ही’ प्रमाण पत्र भरवाकर जमा करवाना अधिकारियों द्वारा भविष्य में किसी भी घटना की स्थिति में अपनी गर्दन बचाने का एक स्पष्ट प्रयास लगता है। यह प्रमाण पत्र प्राचार्यों को कानूनी पचड़ों (legal troubles) में फंसाने का एक दस्तावेज बन सकता है।
यह स्थिति बेहद चिंताजनक है और इसने प्रदेश भर के प्राचार्यों में भय और अनिश्चितता (fear and uncertainty) का माहौल पैदा कर दिया है। शिक्षक संगठन इस आदेश पर तत्काल पुनर्विचार (reconsideration) की मांग कर रहे हैं और जोर दे रहे हैं कि स्कूल भवनों की सुरक्षा का आकलन और सत्यापन केवल योग्य इंजीनियरों द्वारा ही किया जाना चाहिए। बच्चों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता (compromise) नहीं होना चाहिए और इसकी जिम्मेदारी उन्हीं पर होनी चाहिए जिनके पास इसे सुनिश्चित करने की विशेषज्ञता और संसाधन हैं।
मध्य प्रदेश में स्कूल भवन सुरक्षा घोटाला: एक गंभीर चेतावनी
यह बेहद चौंकाने वाला है कि मध्य प्रदेश में School Building Safety एक गंभीर मुद्दा बन गया है। लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा जारी नए आदेश ने प्राचार्यों पर जर्जर स्कूल भवनों की सुरक्षा का पूरा बोझ डाल दिया है, जबकि यह कार्य सिविल इंजीनियरों का है। यह स्पष्ट रूप से एक School Building Safety Scam है, क्योंकि सरकार अपनी जवाबदेही से बच रही है और शिक्षकों को तकनीकी विशेषज्ञता के बिना एक खतरनाक स्थिति में धकेल रही है। प्राचार्यों को न तो भवनों के निरीक्षण का प्रशिक्षण है और न ही संसाधन, फिर भी उनसे प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं। यह एक और School Building Safety Scam को उजागर करता है, जहाँ बच्चों की सुरक्षा को दांव पर लगाकर अधिकारियों को बचाया जा रहा है। शिक्षक संगठन इसे एक बड़ा School Building Safety Scam मान रहे हैं और मांग कर रहे हैं कि योग्य इंजीनियरों द्वारा ही भवनों का सत्यापन किया जाए। इस School Building Safety Scam के खिलाफ आवाज उठाना बेहद ज़रूरी है, ताकि हमारे बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे और यह School Building Safety Scam रुके।
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