E Attandance for Govt School Teachers in MP : क्या यह शिक्षा व्यवस्था का मील का पत्थर है या शिक्षकों के लिए सिरदर्द?

E Attandance for Govt School Teachers in MP

एक ज्वलंत मुद्दा, जिस पर हर शिक्षक और शिक्षा प्रेमी को अपनी बात रखनी चाहिए!

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E Attandance for Govt School Teachers in MP : नमस्ते शिक्षक साथियों, शिक्षा विभाग के अधिकारियों और मेरे सभी पाठकों! मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ई-अटेंडेंस को अनिवार्य करने का सरकार का फैसला आजकल हर चाय की दुकान, हर स्टाफ रूम और हर सोशल मीडिया ग्रुप में बहस का सबसे गरमा-गरम विषय बन गया है। 1 जुलाई 2025 से लागू हुई यह नई प्रणाली ‘हमारे शिक्षक‘ ऐप के ज़रिए आपकी दैनिक हाज़िरी दर्ज कर रही है और यह सिर्फ हाज़िरी तक सीमित नहीं है बल्कि आपके पूरे सेवा रिकॉर्ड का डिजिटल लेखा-जोखा रखने का दावा करती है।

E Attandance for Govt School Teachers in MP

क्या यह कदम वाकई प्रदेश की शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई क्रांति लाएगा या यह शिक्षकों के आत्मसम्मान, सुविधाओं और ग्रामीण क्षेत्रों की जमीनी हकीकतों के साथ एक बड़ी चुनौती खड़ा कर रहा है? आइए, इस मुद्दे की तह तक जाते हैं और आपके लिए एक मंच तैयार करते हैं, जहाँ आप अपने विचार खुलकर रख सकें।

‘हमारे शिक्षक’ ऐप: सिर्फ अटेंडेंस नहीं, आपका पूरा डिजिटल प्रोफाइल!

‘हमारे शिक्षक’ ऐप (जिसे आप Google Play Store से डाउनलोड कर सकते हैं) Education Portal 3.0 से जुड़ा हुआ एक महत्वाकांक्षी ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म है। सरकार का लक्ष्य इसे केवल उपस्थिति दर्ज करने वाले टूल के रूप में नहीं, बल्कि शिक्षकों के लिए एक ‘वन-स्टॉप’ डिजिटल समाधान बनाना है।

E Attandance for Govt School Teachers in MP अब मध्य प्रदेश की शिक्षा प्रणाली का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है, जिसका लक्ष्य पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है। यह E Attandance for Govt School Teachers in MP प्रणाली 1 जुलाई, 2025 से लागू की गई है, जिसके तहत शिक्षकों को ‘हमारे शिक्षक’ ऐप का उपयोग करके अपनी दैनिक उपस्थिति दर्ज करनी होगी। हालाँकि, E Attandance for Govt School Teachers in MP को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क कनेक्टिविटी, ऐप की तकनीकी खामियों और शिक्षकों के बीच डिजिटल साक्षरता की कमी जैसी कई चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। इन समस्याओं के बावजूद, सरकार का मानना है कि E Attandance for Govt School Teachers in MP राज्य में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने और एक अधिक कुशल प्रणाली बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसलिए, E Attandance for Govt School Teachers in MP पर चल रही यह बहस शिक्षा क्षेत्र के सभी हितधारकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

क्या-क्या करता है यह ऐप?

  • मोबाइल लोकेशन और फेस पहचान द्वारा उपस्थिति: यह सबसे मुख्य विशेषता है। आपको स्कूल परिसर से ही अपनी लोकेशन ऑन करके ऐप के माध्यम से हाज़िरी दर्ज करनी होगी, जिसमें आपके चेहरे का सत्यापन भी शामिल है। (कुछ खबरों के अनुसार, बच्चों के साथ सेल्फी का प्रावधान भी है, जिससे हाज़िरी अधिक प्रामाणिक हो सके)।
  • अवकाश और प्रशिक्षण हेतु आवेदन: अब आपको छुट्टी लेने या किसी प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए भी इसी ऐप के माध्यम से आवेदन करना होगा।
  • व्यक्तिगत प्रोफाइल और सेवा विवरण: आपकी पूरी सेवा पुस्तिका, पदोन्नति, वेतन वृद्धि, पेंशन संबंधी जानकारी और अन्य व्यक्तिगत विवरण इस ऐप पर डिजिटल रूप से उपलब्ध रहेंगे।
  • नवीनतम सूचना, आदेश और अपडेट: शिक्षा विभाग के सभी महत्वपूर्ण सर्कुलर, आदेश और अपडेट आपको सीधे इस ऐप पर मिलेंगे।
  • विभागीय सेवाओं के लिए ऑनलाइन अनुरोध: भविष्य में विभिन्न विभागीय सेवाओं के लिए भी आप यहीं से ऑनलाइन अनुरोध कर सकेंगे।
  • शिकायतों और समस्याओं का त्वरित समाधान: ऐप को शिक्षकों की शिकायतों और समस्याओं के त्वरित समाधान हेतु एक माध्यम के रूप में भी प्रचारित किया जा रहा है।

यह ऐप शिक्षकों और विभाग के बीच एक ‘डिजिटल सेतु’ बनने का दावा करता है।

क्यों लाया गया यह ‘डिजिटल डंडा’? – सरकार की मंशा और संभावित लाभ

सरकार इस ई-अटेंडेंस नीति को लाने के पीछे कई बड़े फायदे गिना रही है:

  • अटेंडेंस में पारदर्शिता और जवाबदेही: शिक्षकों की स्कूल में वास्तविक उपस्थिति सुनिश्चित करना। देर से आने या अनुपस्थित रहने पर तुरंत रिकॉर्ड दर्ज होगा।
  • प्रशासनिक दक्षता में सुधार: अवकाश, वेतन, पदोन्नति आदि से संबंधित सभी रिकॉर्ड डिजिटल होने से प्रशासनिक कार्य सुव्यवस्थित होंगे और मानवीय त्रुटियां कम होंगी।
  • समय की बचत: मैनुअल रजिस्टर भरने और रिकॉर्ड संधारण में लगने वाले समय की बचत होगी।
  • मनमानी पर अंकुश: कुछ शिक्षकों द्वारा की जाने वाली कथित अनियमितताओं (जैसे समय पर न आना या किसी और को अपनी जगह भेज देना) पर रोक लगेगी।
  • डिजिटल सशक्तिकरण: शिक्षकों को भी डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करने में सक्षम बनाना।

चुनौतियाँ और शिक्षकों की ‘नाना प्रकार’ की व्यथाएँ: ज़मीनी हकीकत क्या है?

जहां सरकार इस नीति को ‘शिक्षा में क्रांति’ के रूप में देख रही है, वहीं शिक्षकों और शिक्षक संगठनों के लिए यह कई चिंताएं और प्रश्न खड़े कर रही है:

1. नेटवर्क और तकनीकी समस्याएं: ‘टावर’ मिलेगा तो हाज़िरी लगेगी!

  • ग्रामीण क्षेत्रों की कनेक्टिविटी: मध्य प्रदेश के एक बड़े हिस्से, खासकर ग्रामीण और आदिवासी अंचलों में आज भी इंटरनेट कनेक्टिविटी की भारी समस्या है। कई स्कूलों में तो मोबाइल सिग्नल भी ठीक से नहीं आते। ऐसे में शिक्षक हाज़िरी कैसे लगाएंगे? पेड़ पर चढ़कर या नदी-नाले पार करके?
  • ऐप की खामियाँ: शुरुआती दिनों में ‘हमारे शिक्षक’ ऐप के काम न करने, हैंग होने, पासवर्ड संबंधी दिक्कतें और लोकेशन/फेस वेरिफिकेशन में समस्याओं की शिकायतें आम रही हैं। यदि ऐप ही विश्वसनीय नहीं है, तो हाज़िरी कैसे सही मानी जाएगी?

2. प्रशिक्षण की कमी और डिजिटल साक्षरता: ‘हमें सिखाया तो होता!’

  • कई शिक्षकों, विशेषकर वरिष्ठ और ग्रामीण शिक्षकों को स्मार्टफोन और ऐसे ऐप का उपयोग करने में परेशानी होती है। उन्हें इस प्रणाली के उपयोग के लिए पर्याप्त और प्रभावी प्रशिक्षण नहीं मिला है। विभाग ने अब प्रशिक्षण कार्यक्रमों की घोषणा की है लेकिन क्या यह पर्याप्त होगा?

3. भेदभाव का आरोप: ‘सिर्फ शिक्षकों पर ही क्यों?’

  • शिक्षक संगठनों का यह सबसे बड़ा सवाल है: यदि पारदर्शिता और जवाबदेही इतनी महत्वपूर्ण है, तो यह ई-अटेंडेंस प्रणाली राज्य के सभी सरकारी विभागों में समान रूप से क्यों नहीं लागू की जा रही है? क्या केवल शिक्षकों को ही ‘संदिग्ध’ माना जा रहा है? यह शिक्षकों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है।

4. अवकाश कटौती का डर: ‘छुट्टी लेना भी गुनाह हो गया!’

  • यदि शिक्षक निर्धारित समय (स्कूल खुलने के 1 घंटे के भीतर और स्कूल बंद होने के 30 मिनट के भीतर) में हाज़िरी दर्ज नहीं कर पाते, तो आधे दिन का आकस्मिक अवकाश (Casual Leave) स्वतः ही कट जाएगा। यह नियम शिक्षकों में डर पैदा कर रहा है और इसे कठोर माना जा रहा है।

5. अतिथि शिक्षकों की विशेष समस्याएँ: ‘दोहरी मार!’

  • अतिथि शिक्षकों पर भी यही नियम लागू किया गया है (18 जुलाई, 2025 से अनिवार्य)। वे पहले से ही वेतन, सुविधाओं और स्थायित्व को लेकर जूझ रहे हैं। उनका तर्क है कि जब तक उन्हें नियमित शिक्षकों के समान अधिकार और सुविधाएं नहीं मिलतीं, तब तक उन पर ऐसी कड़ी अटेंडेंस नीति थोपना अन्यायपूर्ण है। कई अतिथि शिक्षकों ने तो विरोध स्वरूप ई-अटेंडेंस दर्ज ही नहीं की है, जिसके चलते उनके वेतन कटौती की चेतावनी भी दी गई है।

6. गोपनीयता और निगरानी की चिंता: ‘हर कदम पर नज़र क्यों?’

  • कई शिक्षकों को अपनी लोकेशन और दैनिक गतिविधियों की लगातार निगरानी को लेकर चिंताएं हैं। उन्हें लगता है कि यह उनकी निजता का हनन है।

आगे की राह: क्या सामंजस्य संभव है?

ई-अटेंडेंस नीति को लेकर शिक्षकों में असंतोष बढ़ता जा रहा है, और बालाघाट जैसे कई जिलों में तो विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। सरकार को इन चिंताओं को गंभीरता से लेना होगा और एक सामंजस्यपूर्ण समाधान खोजना होगा।

  • तकनीकी खामियों का त्वरित समाधान: ऐप को अधिक स्थिर और उपयोगकर्ता के अनुकूल बनाना। नेटवर्क समस्याओं वाले क्षेत्रों में वैकल्पिक व्यवस्था (जैसे ऑफलाइन मोड या पास के केंद्र से हाज़िरी की सुविधा) पर विचार करना।
  • व्यापक प्रशिक्षण: सभी शिक्षकों, विशेषकर ग्रामीण और वरिष्ठ शिक्षकों को ऐप के उपयोग का पर्याप्त और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • समानता का सिद्धांत: यदि यह नीति इतनी महत्वपूर्ण है, तो इसे सभी सरकारी विभागों में चरणबद्ध तरीके से लागू करने पर विचार करना चाहिए, ताकि शिक्षकों को यह भेदभावपूर्ण न लगे।
  • शिक्षक संघों से संवाद: शिक्षकों और उनके प्रतिनिधियों के साथ खुलकर संवाद करना, उनकी समस्याओं को सुनना और व्यवहारिक समाधान खोजना।
  • अतिथि शिक्षकों की मांगों पर विचार: अतिथि शिक्षकों की मूलभूत मांगों (मानदेय, अवकाश, नियमितीकरण) पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना, ताकि वे भी इस व्यवस्था को सहर्ष स्वीकार कर सकें।

आपकी राय क्या है? यह ‘जलता हुआ’ मुद्दा अब आपकी अदालत में है!

💥 बहस के गर्मा-गर्म मुद्दे – आप किसके पक्ष में हैं? 💥

हमने इस नीति के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न तैयार किए हैं, जिन पर आप खुलकर अपनी राय रख सकते हैं। तैयार हो जाइए अपनी बात रखने के लिए!

1. जवाबदेही बनाम निजता का हनन: क्या ई-अटेंडेंस शिक्षकों को ‘ट्रैक’ करने का जरिया है?

  • पक्ष में तर्क:
    • “हाँ, बिल्कुल! यह शिक्षकों को समय पर स्कूल लाने और कक्षाओं में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी तरीका है। इससे बच्चों की पढ़ाई का नुकसान रुकेगा और सरकारी धन का सही उपयोग होगा।”
    • शिक्षकों की मनमानी रुकेगी, अनुपस्थित रहने वालों पर लगाम लगेगी।
    • पूरे सिस्टम में पारदर्शिता आएगी, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी।
  • विपक्ष में तर्क:
    • “नहीं, यह शिक्षकों के सम्मान और निजता पर सीधा हमला है! क्या सिर्फ शिक्षक ही लापरवाह हैं? यह सिर्फ उन्हें ‘ट्रैक’ करने का एक तरीका है, जो उन पर अविश्वास दिखाता है।”
    • शिक्षकों को कामचोर साबित करने की कोशिश है, जबकि वे कई गैर-शैक्षणिक कार्य भी करते हैं।
    • अन्य सरकारी विभागों में यह क्यों नहीं? शिक्षकों के साथ भेदभाव क्यों?

2. डिजिटल क्रांति बनाम ग्रामीण हकीकत: क्या तकनीक हर जगह काम कर पाएगी?

  • पक्ष में तर्क:
    • “यह डिजिटल इंडिया की दिशा में एक बड़ा कदम है। हमें तकनीक को अपनाना ही होगा। शुरुआती दिक्कतें आएंगी, लेकिन इससे दीर्घकालिक फायदा होगा और शिक्षा व्यवस्था आधुनिक बनेगी।”
    • तकनीकी खामियाँ दूर की जा सकती हैं, सरकार को इसके लिए इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना चाहिए।
    • यह शिक्षकों को भी डिजिटल रूप से साक्षर बनाएगी।
  • विपक्ष में तर्क:
    • “ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में नेटवर्क की भारी समस्या है! शिक्षकों के पास स्मार्टफ़ोन नहीं हैं, और ऐप ठीक से काम नहीं करता। यह नीति कागज़ पर अच्छी है, लेकिन ज़मीन पर सिर्फ परेशानी का कारण बनेगी।”
    • तकनीकी दिक्कतों के कारण बेवजह वेतन कटेगा, जो शिक्षकों के लिए अन्यायपूर्ण है।
    • पर्याप्त प्रशिक्षण के बिना इसे थोपा जा रहा है, खासकर वरिष्ठ शिक्षकों के लिए यह बड़ी चुनौती है।

3. शिक्षा की गुणवत्ता पर असर: क्या सिर्फ हाजिरी से सुधरेगी पढ़ाई?

  • पक्ष में तर्क:
    • “निश्चित रूप से! जब शिक्षक स्कूल में होंगे और समय पर आएंगे, तो वे पढ़ाएंगे। बच्चों को नियमित शिक्षक मिलेंगे, जिससे पढ़ाई का माहौल सुधरेगा और परिणाम बेहतर होंगे।”
    • छात्रों में भी नियमितता आएगी, जब वे देखेंगे कि उनके शिक्षक समय पर आते हैं।
    • शिक्षण कार्य को प्राथमिकता मिलेगी, गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्ति मिलेगी।
  • विपक्ष में तर्क:
    • “नहीं! सिर्फ उपस्थिति दर्ज करने से शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधरती। शिक्षकों के मनोबल पर चोट लगेगी, वे पढ़ाने के बजाय हाजिरी लगाने की चिंता में रहेंगे। असली मुद्दे (जैसे संसाधनों की कमी, बड़ी कक्षाएं) अनसुलझे रहेंगे।”
    • यह शिक्षकों को तनाव देगा और उनका ध्यान शिक्षण से भटकाएगा।
    • क्या यह मान लेना सही है कि शिक्षक पहले पढ़ाते नहीं थे? यह शिक्षकों के सम्मान को ठेस पहुंचाता है।

4. अतिथि शिक्षकों पर दोहरी मार: क्या उन्हें भी समान नियम लागू करना उचित है?

  • पक्ष में तर्क:
    • “हाँ, अनुशासन सबके लिए समान होना चाहिए। यदि वे सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, तो उन पर भी वही नियम लागू होने चाहिए जो अन्य शिक्षकों पर हैं।”
    • अतिथि शिक्षकों की जवाबदेही भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
  • विपक्ष में तर्क:
    • “बिल्कुल नहीं! अतिथि शिक्षकों को पहले तो नियमित शिक्षकों जैसी सुविधाएं और वेतन नहीं मिलता। फिर उन पर यही नियम क्यों थोपे जा रहे हैं? यह उन पर दोहरी मार है!”
    • जब उनके पास मूलभूत सुविधाएं (जैसे पर्याप्त मानदेय, अवकाश) नहीं हैं, तो उनसे इतनी सख्ती की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
    • यह उन्हें आंदोलन करने पर मजबूर करेगा, जिससे शिक्षा प्रभावित होगी।

आपकी राय सबसे महत्वपूर्ण!

तो दोस्तों, इस मुद्दे पर आपके क्या विचार हैं? क्या आपको लगता है कि ई-अटेंडेंस नीति शिक्षा व्यवस्था के लिए गेम चेंजर साबित होगी, या यह शिक्षकों के लिए अनावश्यक बोझ है?

नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी राय ज़रूर दें! इस बहस को आगे बढ़ाएं और बताएं कि आप किस पक्ष में हैं!

शिक्षक साथियों, अभिभावकों और सभी जागरूक नागरिकों! नीचे कमेंट सेक्शन में अपनी बात खुलकर रखें। यह बहस जारी रहनी चाहिए ताकि सही समाधान तक पहुँचा जा सके।

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